Qabron ki zayarat

 Qabron ki zayarat 



📮 क़ब्रों की ज़ियारत

★ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : मैं ने तुम्हें क़ब्रों की ज़ियारत से मना किया था, अब तुम भी उन की ज़ियारत किया करो।

मुस्लिम-कित्ताबुल् जनाइज़, हदीस न० 9777, यह जियारत इस लिये जाइज़ नहीं कि वहां पर शिर्क- बिदअत के कार्य किये जायें, बल्कि आख़िरत को याद किया जाये और क़ब्र वालों के लिये मग़फ़िरत की दुआ की जाये (रफ़ीक़ी)

★ एक रिवायत में है: क़ब्रों की ज़ियारत मौत को याद दिलाती है।

📘[मुस्लिम-किताबुल जनाइज़, हदीस न० 976]

शैख़ अलबानी रह० फ़रमाते हैं: नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ब्रों की ज़ियारत करने वाली महिलाओं पर लानत की, मगर इस के बाद आपने अनुमति देदी तो इस में मर्द और महिला दोनों शामिल हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक ऐसी महिला के पास से गुज़रे जो क़ब्र पर बैठी रो रही थी, तो आप ने उसे अल्लाह से डरने और सब करने का हुक्म दिया।

📙[बुख़ारी - किताबुल जनाइज़, हदीस न0 1252, 1283, 1303 + मुस्लिम- किताबुल जाइज़]

★ अगर महिलाओं का कब्रिस्तान जाना ना जाइज़ होता तो आप उस को कब्रिस्तान में आने से भी मना करते।

★ हज़रत आइशा रज़ि० अपने भाई अब्दुर्रहमान की क़ब्र पर गयीं तो उन से कहा गया, क्या नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने (महिलाओं को) इस से मना नहीं किया था? तो आइशा रज़ि० ने फ़रमायाः पहले मना किया था परन्तु अब इजाज़त दे दी है।

📕[मुस्- तदरक हाकिम- (1/376) इसे हाफ़िज़ ज़हबी ने सहीह और इमाम इराक़ी ने "जय्यिद" कहा है।]

★ हज़रत आइशा रज़ि० फ़रमाती हैं, मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा: जब में कब्रिस्तान में जाऊँ तो कौनसी दुआ पढ़ें? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें दुआ सिखाई।

📘[मुस्लिम-किताबुल जनाइज़, हदीस न0 974]

इस से भी मालूम हुआ कि महिलाओं का कब्रिस्तान जाना जाइज़ है।

★ हज़रत अबू हुरैरा रज़ि० से रिवायत है: "नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ब्रों पर जाने वाली महिलाओं पर लानत फ़रमायी है।

📗[तिर्मिज़ी-किताबुल जनाइज़, हदीस न0 1057 + इमाम तिर्मिज़ी, इब्ने हिब्बान ने सहीह कहा है।]

▶️क्योंकि इस में सब्र की ताक़त कम होती है और शर्क के कार्य करने में बड़ी तेज़ होती है।

🔥मालूम हुआ कि महिलाओं के लिये बहुत अधिक जाना मना है, मगर कभी-कभार बहर हाल जाइज़ है।

★ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :

✨"मुदों को बुरा न कहो, जो काम उन्होंने किये थे वह उन्हें मिलेंगे।"

📙[बुख़ारी - किताबुल् जनाइज़, हदीस न० 1393] 
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📮कब्रों की ज़ियारत की दुआयें

★ जो शख़्स क़ब्रों की ज़ियारत करने जाये वह यह दुआयें पढ़ेः

السَّلَامُ عَلَى أَهْلِ الدِّيَارِ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُسْلِمِينَ وَيَرْحَمُ اللَّهُ الْمُسْتَقْدِمِينَ مِنَّا وَالْمُسْتَآخِرِيْنَ وَإِنَّا إِنْ شَاءَ اللَّهُ بِكُمْ لَلَاحِقُوْنَ

💠अस्सलामु अला अ‌लिद्दियारि मिनल् मोमिनी-न वल् मुस्लिमी-न व-यर- ह - मल्लाहुल मुस्तक़दिमी न मिन्ना वल् मुस्ताख़िरी न वइन्ना इन् शा - अल्लाहु बिकुम् ललाहिक़ू - न

✨"मोमिन और मुसलमान के घर वालों पर सलामती हो, हम में से आगे जाने वालों और पीछे रहने वालों पर अल्लाह तआला रहम फरमाये, और अगर अल्लाह ने चाहा तो हम भी बहुत जल्द तुम से मिलने वाले हैं। "

📘[मुस्लिम-किताबुल जनाइज़, हदीस न0 974 की जैली हदीस]

★ मुस्लिम शरीफ़ ही की एक रिवायत में यह शब्द भी हैं। अस्- अलुल्ला - ह लना व लकुमुल् आफि-य-त

✨"मैं अल्लाह तआला से अपने और तुम्हारे लिये शान्ति की दुआ करता हूं। "

📘[सहीह मुस्लिम शरीफ-किताबुल जनाइज़, हदीस न0 975] 
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