Tauheed aur shirk part:5

Tauheed aur shirk part:5



 शिर्क और तौहीद (पार्ट - 7)

आज का हमारा मौज़ू है —
तौहीद की फज़ीलत :-
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"अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहू अन्हु रिवायत करते हैं की रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तींन चीज़े दी गई थीं (मेराज वाली रात) : उन्हें पाँच नमाज़े दी गयी थी, उन्हें सुरह बक़रा की इख़त्तामी (आख़िरी) आयत दी गयी थीं और उनकी उम्मत के लोगों को संगीन गुनाहो की माफ़ी दी गई थी जो अल्लाह के साथ किसी को शरीक नहीं करते।"
(सहीह मुस्लिम, 173)
" हज़रत अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु कहते हैं रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हर नबी के लिए एक दुआ ऐसी है जो ज़रूर क़बूल होती है तमाम अंबिया ने वो दुआ दुनिया मैं ही माँग ली, लेकिन मैं ने अपनी दुआ क़यामत के दिन अपनी उम्मत की शफ़ाअत के लिए महफूज़ कर रखी है, मेरी शफ़ाअत इन शा अल्लाह हर उस शख़्स के लिए होगी जो इस हाल मैं मरा के उसने किसी को अल्लाह अज़्ज़ोवजल के साथ शारिक नहीं किया।
(किताब अल-इमान सहीह मुस्लिम हदीस 399) "
अल्लाह अज़्ज़ोवजल हम सबको रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शफ़ाअत नसीब फ़रमाए..... आमीन
"हज़रत अनस बिन मलिक (रज़ि) कहते हैं मैंने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को फ़रमाते हुए सुना है अल्लाह अज़्ज़ोवजल फ़रमाते हैं, ऐ इब्न-ए-आदम तू जब तक मुझे पुकारता रहेगा और मुझसे बख़्शिश की उम्मीद रखेगा मैं तुझ से सर-ज़द होने वाला हर गुनाह बख़्शता रहूंगा, ऐ इब्न-ए-आदम मुझे कोई परवाह नहीं अगर तेरे गुनाह आसमान किनारे तक पहुंच जायें और तू मुझसे बख़्शिश तलब करे तो मैं तुझे बख़्श दूंगा, ऐ इब्न-ए-आदम मुझे परवाह नहीं तू रूवे ज़मीन के बराबर गुनाह लेकर आए और मुझसे इस हाल मैं मिले के किसी को मेरे साथ शरीक ना किया हो तो मैं रुवे ज़मीन के बराबर ही तुम्हें मग़फिरत अता करुंगा (यानी सारे गुनाह माफ़ कर दूंगा)।"
(तिर्मिज़ी :3540) (हसन)
सुब्हानअल्लाह हमारा अल्लाह कितना रहीम है अपने रहमत से गुनाहगार बंदे को बख़्श देता है …… काश हमें अल्लाह अज़्ज़ोवजल से मांगना तो आजाये बस वही दुआओं को और हमारी पुकार को सुनने वाला है उसके सिवा कोई और नहीं।
और साथ में ये भी ग़ौर करने वाली बात है की एक सही रिवायत (हदीस) के मुताबिक़ ग़ैरुल्लाह को पुकारना अल्लाह के साथ शरीक करना है तो हमें सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह को पुकारना चाहिए।
अल्लाह के सिवा कोई नहीं है जो हमारी मुश्किल को दूर कर सकता है या हमारी ज़रा सी भी मदद कर सकता है।
अल्लाह तआला से दुआ है की हमे उन लोगो में शुमार करे जो अल्लाह के साथ शिर्क नहीं करते। आमीन


शिर्क और तौहीद (पार्ट - 8

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आज का हमारा मौज़ू है —
क़ुरआन मजीद मे नज़र का बयान :-
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इसको अरबी ज़ुबान में नज़र, फ़ारसी में नियाज़, और उर्दू में मन्नत कहते हैं।
क़ुरआन मजीद की 5 आयतों में नज़र पर चर्चा हुई है।
1- "तुमने जो कुछ भी ख़र्च किया हो और जो कुछ भी नज़र मानी, अल्लाह को उसका इल्म है और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं"
(सूरह बक़रा : 270)
तशरीह: यानि ख़र्च चाहे अल्लाह की राह या शैतान की राह में हो और नज़र चाहे अल्लाह की राह में मानी हो या अल्लाह के इलावा किसी दुसरे के लिए, दोनो सूरतों में इंसान की नियत और उस काम को अल्लाह बख़ूबी जानता है । जिन लोगों ने अल्लाह के लिए ख़र्च किया होगा और उसके लिए नज़र मानी होगी वह उसका सवाब पायेगे..
और जिन ज़ालिमों ने शैतानी राहों में ख़र्च किया होगा और अल्लाह को छोड़ कर दूसरे के लिए नज़रें मानी होगी, उनको अल्लाह के अज़ाब से बचने वाला कोई मददगार नहीं….
2- "जब इमरान की औरत ने कहा की मेरे परवरदिगार में उस बच्चे को जो मेरे पेट (stomach) में है तेरी नज़र करती हूँ वह तेरे ही काम के लिए क़ुर्बान होगा मेरी इस नज़र को क़ुबूल कर तू सुनने वाला और जानने वाला है"
(सूरह आल इमरान आयत-25)
तशरीह: यानि हज़रत इमरान की पत्नी ने उम्मीद के दिनों में यह इक़रार किया ऐ मेरे अल्लाह! मैं अपने पैदा होने वाले बच्चे को तेरे दीन की ख़िदमत के लिए क़ुर्बान करने की मन्नत मांगती हूं..
3- ”हज़रत मरयम को अल्लाह पाक ने फ़रमाया पस तू खा और पी और अपनी आंखें ठंडी कर फ़िर अगर कोई इंसान तुझे दिखाई दे तो उसे कह दे की मैंने अल्लाह के लिए रोज़े की नज़र मानी है, इस्लिए मैं आज किसी से बात नहीं करुँगी"
(सूरह मरयम आयत-26)
तशरीह: अल्लाह पाक ने हुक्म दिया की ऐ मरियम! अगर कोई इंसान तुझे दिखायी दे तो उससे बात ना करो बल्कि इशारे से समझाओ की मैंने अल्लाह के लिए आज ख़ामोश करने की मन्नत मानी है...
4- "फिर वह हज करने वाले अपना मेल कुचेल (गंदगी) दूर करे और अपनी नज़रें पूरी करें और इस पुराने घर का तवाफ़ करें"
(सूरह अल हज आयत- 29)
5- ”(नेक लोग वो है) जो अपनी नज़रें पूरी करते हैं और उस दिन से डरते हैं जिसकी बुराई फेली है”
(सूरह दहर आयत- 7)
क़ुरान मजीद की आयतों से साबित हुआ की अल्लाह के बंदे उसी की नज़र माने है और दूसरे के नाम की नज़र नहीं माने……
ज़रूरत पूरी करने वाली सिर्फ़ अल्लाह की ज़ात है, इसलिये अल्लाह के सिवा किसी दूसरे के नाम पर सदक़ा वा ख़ैरात करना और नज़र-ओ-नियाज़ देना खुला शिर्क है, जैसे "11वी में नियाज़", इमाम ज़फ़र के कुंडे, शहीदों की सबील, हज हुसैन (रज़ि) का खिचड़ा, शाह मदार का मुर्गा, बड़े इमाम का बक़रा, हाजी ग़ैब की चादर आदि।
इस पार्ट को यही रोकते हैं,
जुड़े रहें....
इस नुक़्ते पर मज़ीद गुफ्तगूं इन्शाअल्लाह अगले पार्ट में पेश की जायेगी।
अल्लाह से दुआ है कि अल्लाह हमे बिदअत और शिर्क से बचाए और वही दींन पर अमल करने की तौफ़ीक अता करे जो दींन रसूल अल्लाह छोड़ कर गए थे, आमीन।
आपका दीनी भाई
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