नमाज़ के बाद के मस्नून अज़कार

नमाज़ के बाद के मस्नून अज़कार




(1) हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि० रिवायत करते हैं कि में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नमाज़ का तमाम होना तक्बीर (यानी अल्लाहु अक्बर की आवाज़) से पहचान लेता था।

📙[बुख़ारी - सिफ़तिस्सलात, हदीस न० 841, 842 + मुस्लिम - किताबुल मसाजिद, हदीस न0 583]

✨यानी नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फर्ज़ नमाज़ का सलाम फेर कर ऊंची आवाज़ से अल्लाहु अक्बर कहते थे। इस से साबित हुआ कि इमाम और मुक़्तदियो को नमाज़ से फारिग होते ही एक मर्तबा बुलन्द आवाज़ से "अल्लाहु अक्बर" कहना चाहिये।

(2) हज़त सौबान रज़ि० रिवायत करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब अपनी नमाज़ ख़त्म करते तो (तीन बार) फ़रमातेः

اسْتَغْفِرُ اللهَ اسْتَغْفِرُ اللَّهَ اسْتَغْفِرُ اللهَ
फिर यह दुआ पढ़ते -

اللَّهُمَّ أَنْتَ السَّلَامُ وَمِنْكَ السَّلَامُ تَبَارَكْتَ يَاذَا الْجَلَالِ وَالْإِكْرَامِ

✨ "या इलाही! तू "अस्सलाम" है और तेरी ही तरफ़ सलामती है। ऐ जलाल और इकराम वाले! तू बड़ा ही बर्कत वाला है।"

📘[मुस्लिम-किताबुल मसाजिद, हदीस न0 591]

⚠️चेतावनी

🔴नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दुआ में इज़ाफ़ा

🔹जिस प्रकार अज़ान की दुआ में कुछ लोगों ने इज़ाफ़ा कर रखा है, इसी प्रकार इस दुआ में भी लोगों ने इज़ाफ़ा कर रखा हैं। वह ज़्यादती देखें: "अल्लाहुम्मअन्- तस्सलामु वमिन्- कस्सलामु" यह तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अल्फ़ाज़ हैं। आगे "वइलै-क यर्जिउस्सलामु हय्यिना रब्बना बिस्सलामि व- अदख़िल्ना दा-रस्सलामि" यह अल्फाज़ इज़ाफ़ा के हैं। कितने दुःख की बात है कि शुरू और अन्त में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अल्फ़ाज़ और बीच में स्वंय अपनी ओर से दुआ के वाक्ये (अल्फ़ाज़) बढ़ा कर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस में ज़्यादती कर रखी है। अल्लाह की पनाह! क्या नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यह भूल गये थे, या दुआ अधूरी छोड़ गये थे जिस को इन लोगों ने मुकम्मल किया है?

🔹अगर कोई कहे कि अब बढ़ाये हुये जुम्लों में क्या ख़राबी है? इन का तर्जुमा भी कितना अच्छा है। आख़िर यह भी तो दुआ ही है और अल्लाह ही के आगे है? - - - तो इस प्रकार का ख़्याल रखने वालों से अनुरोध है, कि इन्सान अपनी मातृ भाषा, या अरबी भाषा वग़ैरह में जो दुआ चाहे अपने मालिक से करे, जिस प्रकार के वाक्य चाहे, प्रयोग करे कोई हर्ज नहीं। मगर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस में अपनी ओर से शब्द या वाक्य ज़्यादा करना नाजाइज़ है। ऐसा करने से दीन की अस्ल सूरत क़ाइम नहीं रहती।

(3) हज़रत मआज़ बिन जबल रज़ि० कहते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मेरा हाथ पकड़ कर फ़रमाया : "ऐ मआज़ ! अल्लाह की कसम! मैं तुम से मुहब्बत करता हूं" यह सुन कर मैंने भी कहा: "मैं भी आप से मुहब्बत करता हूं" फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (जब की तुम मुझ से मुहब्बत रखते हो तो मैं तुम्हें वसिय्यत करता हूं कि) हर (फ़र्ज़) नमाज़ के बाद यह (दुआ) पढ़ना न छोड़ना

رَبِّ أَعِنِّى عَلَى ذِكْرِكَ وَشُكْرِكَ وَحُسْنِ عِبَادَتِكَ

✨"ऐ मेरे मौला! ज़िक्र करने, शुक्र करने और अच्छी इबादत करने में मेरी सहायता कर।"

📗[नसई (सु-नन कुबरा) हदीस न0 1226 + अबू दावूद 1522 + इसे इमाम हाकिम, इमाम ज़हबी, इब्ने खुजैमा, इब्ने हिब्बान और नौवी ने सहीह कहा अबू दावूद, में "रब्बि" के स्थान पर "अल्लाहुम्म" के शब्द हैं।]

(4) हज़रत मुग़ीरा बिन शोबा रज़ि० रिवायत करते हैं कि अल्लाह
के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद कहते थे-

لا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ، اللَّهُمَّ لَا مَانِعَ لِمَا أَعْطَيْتَ، وَلَا مُعْطِيَ لِمَا مَنَعْتَ، وَلَا يَنْفَعُ ذَا الْجَدِّ مِنْكَ الْجَدُّ

✨“अल्लाह के सिवा कोई (सच्चा) माबूद नहीं है, वह अकेला है, उस का कोई साझी नहीं है, उसी के लिये बादशाहत है और उसी के लिये तमाम तारीफ़ है, और वह हर वस्तु पर क़ुदरत रखने वाला है। ऐ अल्लाह ! तेरी अता को कोई रोकने वाला नहीं, और तेरी रोकी हुयी चीज़ को अता करने वाल नहीं, और मालदार को (उस की) धन-दौलत तेरे अज़ाब से नहीं बचा सकती।"

📙[बुख़ारी- सिफ़तिस्सलात, हदीस न० 844 + मुस्लिम-किताबुल मसाजिद, हदीस न0 593]

(5) अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़ि० रिवायत करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नमाज़ से सलाम फेरने के बाद यह दुआ पढ़ते थेः

لا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْء قَدِيرٌ ، لا حَوْلَ وَلا قُوَّةَ إِلا بِاللَّهِ، لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ، وَلَا نَعْبُدُ إِلا إِيَّاهُ، لَهُ النِّعْمَةُ وَلَهُ الْفَضْلُ وَلَهُ الثَّنَاءُ الْحَسَنُ، لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّيْنِ، وَلَوْ كَرِهَ الْكَافِرُونَ

✨"अल्लाह के अलावा कोई सच्चा माबूद नहीं, वह अकेला है उस का कोई शरीक नहीं, उसी के लिये बादशाहत है और उसी के लिये सारी तारीफ़ है और वह हर वस्तु पर क़ुदरत रखने वाला है। गुनाहों से रुकना और इबादत पर इख़्तियार पाना केवल अल्लाह की तौफ़ीक़ से है। अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माबूद नहीं, और हम (केवल) उसी की इबादत करते हैं। हर नेमत का मालिक वही है और तमाम फ़ज़्ल उसी की मिलकियत है (यानी फ़ज़्ल और नेमतें केवल उसी की तरफ़ से है।) उसी के लिये अच्छी तारीफ़ है। अल्लाह के सिवा कोई (हक़ीक़ी) माबूद नहीं, हम (केवल) उसी की उपासना करते हैं अगरचे काफ़िर बुरा मानें।"

📙 [बुख़ारी - सिफ़तिस्सलात, हदीस न० 844 + मुस्लिम-किताबुल मसाजिद, हदीस न0 594]

(6) नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नमाज़ के बाद इन कलिमात के साथ अल्लाह की पनाह पकड़ते थे (यानी उन्हें पढ़ते थे)

اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوْذُ بِكَ مِنَ الْجُبْنِ، وَأَعُوْذُبِكَ مِنَ الْبُخْلِ، وَأَعُوْذُ بِكَ مِنْ أَنْ أَرَدَّ إِلَى أَرْذَلِ الْعُمُرِ، وَأَعُوْذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ الدُّنْيَا وَعَذَابِ الْقَبْرِ

✨“ऐ अल्लाह! में बुज़दिली और कन्जूसी से तेरी पनाह चाहता हूं, और इस से भी तेरी पनाह चाहता हूं कि मुझे ज़्यादा बुढ़ापे की तरफ़ फेर दिया जाये। और इसी प्रकार मैं दुनियावी फितनों और क़ब्र के अज़ाब से भी तेरी पनाह चाहता हूं।"

📙[बुख़ारी - किताबुद्वावात, हदीस न06374]

(7) हज़रत अबू हुरैरा रज़ि० कहते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : उस शख़्स के तमाम गुनाह माफ़ कर दिये जायेंगे चाहे समन्दर की झाग के बराबर हों। जो हर (फ़र्ज़) नमाज़ के बाद यह पढेः

✨"सुब्हा-नल्लाहि 33 बार, अल्-हम्दु लिल्लाहि 33 बार, अल्लाहु अक्बर 33 बार, और एक बार "लाइला - ह इल्लल्लाहु वह- दहू ला शरी-क लहू लहुल मुल्कु व-लहुल् हम्दु वहु-व अला कुल्लि शैइन् क़दीर

🗣️तर्जुमा - "अल्लाह (हर ऐब से) पाक है" "तमाम तारीफें अल्लाह के लिये हैं" "अल्लाह सब से बड़ा है" "अल्लाह के अलावा और कोई (सच्चा) माबूद नहीं, वह अकेला है, उस का कोई शरीक नहीं, उसी के लिये सारी बादशाहत और उसी के लिये सारी तारीफ़ है, और वह हर चीज़ पर ख़ूब क़ुदरत रखने वाला है।"

📘 [मुस्लिम - किताबुल् मसाजिद, हदीस न0 597]

★ हज़त क-अब बिन अज़रह रज़ि० रिवायत करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : जो शख़्स फ़र्ज़ नमाज़ के बाद "सुब्हानल्लाह" 33 बार "अल्-हम्दु लिल्लाहि "33 बार और "अल्लाहु अक्बर" 34 बार कहेगा तो वह नाकाम नहीं होगा।

📘[मुस्लिम-किताबुल् मसाजिद, हदीस न0 596]

(😎 हज़त उक़बा बिन आमिर रज़ि० रिवायत करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें हुक्म दिया हर (फ़र्ज़) नमाज़ के बाद "मु- अव्वज़ात" पढ़ा करूं।

📗[अबू दावूद - अबवाबुल् वित्र, हदीस न0 1523 + इसे हाकिम, ज़हबी, इब्ने खुजैमा और इब्ने हिब्बान (2347) ने सहीह कहा है।]

"मु-अव्वज़ात" (यानी अल्लाह की पनाह में देनी वाली सूरतें) यह उन सूरतों को कहते हैं जिनके शुरू में "कुल् अऊज़ु" का शब्द है। इन सूरतों को "मु-अव्व-ज़तैन" भी कहा जाता है। यानी क़ुरआन पाक की अन्तिम दो सूरतें जो निम्न हैं:

بِسمِ اللهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ
قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ الْفَلَقِ مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ وَمِنْ شَرِّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ وَمِنْ شَرِّ النَّفْتِ فِي الْعُقَدِ وَمِنْ شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ (الفلق ١/١١٣ - ٥)

✨तर्जुमा - "अल्लाह के नाम से (आरंभ करता हूं) जो बहुत रहम करने वाला निहायत मेहरबान है।
कहो! मैं पनाह (सुरक्षा) मांगता हूं सुब्ह के रब की+हर उस चीज़ की बुराई से जो उस ने पैदा की है + और अंधेरी रात की बुराई से जबकि वह छा जाये और गिरहों (गांठों) में फूंकने वालियों की बुराई से (यानी जादू, टोने करने और कराने वालों की बुराई) + और हसद करने वाले की बुराई से जबकि वह हसद करे + "

بِسمِ اللهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ
قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ النَّاسِ مَلِكِ النَّاسِ إِلهِ النَّاسِ مِنْ شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ الَّذِي يُوَسْوِسُ فِي صُدُورِ النَّاسِ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ (الناس ١/١١٤-٦)

✨तर्जुमा - अल्लाह के नाम से (आरंभ करता हूं) जो बहुत रहम करने वाला निहायत मेहरबान है।
कहो! मैं पनाह मांगता हूं लोगों के रब की+लोगों के मालिक की + लोगों के (सच्चे) माबूद की+उस वस्वसा डालने वाले की बुराई से जो बार-बार पलट कर आता है+जो लोगों के सीनों (दिलों) में वस्वसे (और बुरे ख़यालात) डालता है + चाहे वह जिन्नों में से हो या इन्सानों में से

(9) हज़रत अबू उमामा रज़ि० कहते हैं कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फ़रमाते हुये सुना कि “जो शख़्स नमाज़ के बाद आयतुल् कुर्सी पढ़े तो उस को जन्नत में दाख़िल होने से सिवाए मौत के कोई चीज़ नहीं रोकती।"

📓 [नसई- अमलिल् यौमि वल्लै-लह, हदीस न0 100+ इसे इब्ने हिब्बान और मुन्जुरी ने सहीह कहा है।]

मतलब यह है कि आयतुलकुर्सी पढ़ने वाला मौत के बाद सीधा जन्नत में जायेगा।

🔴आयतुल कुर्सी

اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ لَا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلَا نَوْمٌ لَّهُ مَا فِي السَّمَاواتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ مَن ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِنْدَهُ إِلَّا بِإِذْنِهِ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِّنْ عِلْمِهِ إِلَّا بِمَا شَاءَ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَوَاتِ وَالأَرْضَ وَلَا يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ (البقرة ٢٥٥/٢)

✨तर्जुमा - "अल्लाह के अलावा कोई (सच्चा) माबूद नहीं, वह जीवित है, हमेशा क़ाइम रहने वाला है। न वह ऊघता है न सोता है, उसी का है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, उस की अनुमति के बिना कौन उस के पास (किसी की) सिफ़ारिश कर सकता है? वह जानता है जो कुछ उन से पहले गुज़रा और जो कुछ उन के बाद होगा, और लोग उस के अिल्म में से किसी भी चीज़ का एहाता नहीं कर सकते (मालूम नहीं कर सकते) मगर जितना वह चाहता है (उतना ज्ञान जिसे चाहे दे देता है) उस की कुर्सी ने आसमानों और ज़मीन को घेर रखा है, और उन दोनों की सुरक्षा उस को थकाती नहीं, वह बुलन्द - बाला, बड़ी बड़ाइयों वाला है।"

अल्लाह जो सारी काइनात की सुरक्षा कर सकता है तो क्या वह एक इन्सान या उस की कार की सुरक्षा नहीं कर सकता? बिला शुब्हा कर सकता है फिर वह अपनी सुरक्षा के लिये जाइज़ अस्बाब के स्थान पर शिर्क के अस्बाब क्यों इख़्तियार करता है? इस मक़सद के लिये मुख़्तलिफ़ कड़े और अंगूठियां क्यों पहनता है? धागे क्यों बांधता है? अपनी गाड़ी पर जूते या चीथड़े क्यों लटकाता है? ऐ अल्लाह के बन्दे ! आयतुल कुर्सी पढ़ो, सुरक्षा में रहो, बिला शुब्हा अल्लाह पाक की सुरक्षा ही बेहतरीन सुरक्षा है, जिस का कोई तोड़ नहीं। (रफ़ीक़ी)

★ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :

✨"जो शख़्स रात को सोते समय आयतुल कुरसी पढ़ लेता है तो अल्लाह की तरफ़ से उस के लिये मुहाफ़िज़ (सुरक्षा कर्मी) मुक़र्रर कर दिया जाता है और फ़ज्र तक शैतान उस के क़रीब नहीं आता है।"

📓 [नसई-हदीस न0959 + इसे इब्ने खुजैमा (हदीस न0 2424) ने सहीह कहा है।]

(10) اللَّهُمَّ أَصْلِحْ لِي دِينِيَ الَّذِي جَعَلْتَهُ لِي عِصْمَةً، وَأَصْلِحْ لِي دُنْيَايَ الَّتِي جَعَلْتَ فِيهَا مَعَاشِي اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوْذُ بِرِضَاكَ مِنْ سَخَطِكَ، وَأَعُوْذُ بِعَفْوِكَ مِنْ نِقْمَتِكَ، وَأَعُوْذُ بِكَ مِنْكَ، لَا مَانِعَ لِمَا أَعْطَيْتَ وَلَا مُعْطِيَ لِمَا مَنَعْتَ، وَلَا رَادَّ لِمَا قَضَيْتَ، وَ لَا يَنْفَعُ ذَا الْجَدَّ مِنْكَ الْجَدُّ

✨तर्जुमा - "ऐ अल्लाह! मेरे लिये मेरा वह दीन संवार दे जिस को तूने मेरी हिफ़ाज़त का सबब बनाया है और इसी प्रकार मेरी दुनिया भी संवार दे जिस में तू ने मेरी रोज़ी पैदा की है + ऐ अल्लाह ! मैं तेरी रज़ा के साथ तेरे ग़ुस्सा से, और तेरी माफ़ी के साथ तेरे दन्ड से, और तेरे करम के साथ तेरी सज़ा से पनाह मांगता हूं+जो चीज़ तू अता करे उसे कोई रोकने वाला नहीं, और जो तू रोके उसे कोई देने वाला नहीं, तेरे फ़ैसले कोई टालने वाला नहीं और किसी धनवान को उस का धन माल तेरे दन्ड से नहीं बचा सकता। "

📓[नसई- हदीस न0 1345+ इसे इब्ने हिब्बान (541) और इब्ने खुजैमा (745) ने सहीह कहा है।]

(11) رَبِّ أَعِنِّى وَلا تُعِنْ عَلَى، وَانْصُرْنِي وَلَا تَنْصُرْ عَلَى، وَامْكُرْلِي وَلَا تَمْكُرْ عَلَى، وَاهْدِنِي وَيَسْرِ الْهُدَى لِي ، وَانْصُرْنِي عَلَى مَنْ بَغَى عَلَى رَبِّ اجْعَلْنِي شَاكِرًا لَكَ ذَاكِرًا لَكَ رَاهِبًا لَكَ مِطْوَاعًا لَكَ مُخْبِتًا إِلَيْكَ أَوَّاهَا مُنِيبًا، رَبِّ تَقَبَّلْ تَوْبَتِي، وَاغْسِلْ حَوْبَتِي، وَأَجِبْ دَعْوتِي، وَثَبِّتْ حُجَّتِي، وَسَدِّدْ لِسَانِي، وَاهْدِ قَلْبِي وَاسْلُلْ سَخِيْمَةَ صَدْرِي

✨तर्जुमा - "ऐ मेरे रब! तू मेरी सहायता कर और मेरे ख़िलाफ़ सहायता न कर + मुझे ग़ालिब (विजयी) कर और (किसी को) मुझ पर गालिब न कर + मुझे तदबीर बता और (मेरे दुश्मनों को) मेरे ख़िलाफ़ तदबीर न बता + मुझे हिदायत दे और उस को मेरे लिये आसान कर दे+और मेरे ऊपर अत्याचार करने वालों के ख़िलाफ़ मेरी सहायता कर+ऐ मेरे रब ! मुझे अपना शुक्र करने वाला, अपना ज़िक्र करने वाला, अपने से डरने वाला, अपना हुक्म मानने वाला, अपने सामने गिड़गिड़ाने वाला और अपनी तरफ़ आजिज़ी से रुजू करने वाला बना दे ऐ मेरे रब ! मेरी तौबा क़ुबूल फ़रमा और मेरे गुनाह धो डाल, मेरी दुआ क़ुबूल कर और मेरी दलील साबित रख, मेरी ज़बान सीधी कर, मेरे दिल को हिदायत से नवाज़ और मेरे सीने से कीना निकाल दे।"

📗 [तिर्मिज़ी - किताबुद्दावात, हदीस न0 3551, 3560+इब्ने माजा- किताबुदुआ, हदीस न० 3830 + अबू दावूद- हदीस न0 1510+ इसे हाकिम, = 1 इब्ने- हिब्बान ने सहीह कहा है। यह मुकम्मल दुआ मिश्कात शरीफ़ में इन्हीं शब्दों में मौजूद है।] 
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