Kya Allah hamare liye kaafi nahi
Kya Allah hamare liye kaafi nahi
शिर्क और तौहीद (पार्ट - 14)
आज का हमारा मौज़ू है —
क्या अल्लाह हमारे लिए काफ़ी नहीं??
“वाक़ई, तुम अल्लाह को छोड़ कर जिन को पुकारते हो, वो भी तुम्हारी तरह अल्लाह के बंदे हैं, तो तुम इनको पुकारो! फिर इन्हे भी चाहिए के तुम्हारा जवाब दे, अगर तुम सच्चे हो।”
[सुरह आराफ़, सूरत 07, आयत 194]
और अगर अल्लाह तुम्हें कोई तकलीफ़ पहुंचाना चाहे तो इस के सिवा उसे कोई दूर करने वाला नहीं या अगर वो तुम्हारे साथ भलाई का इरादा करे तो कोई उस के फ़ज़ल को रद करने वाला नहीं वो अपने बंदों में से जिसे चाहता है अपना फ़ज़ल पहुँचाता है और वो बड़ा बख्शने वाला निहयत मेहरबान है।
[सुरह यूनुस आयत 107]
"जिन जिन को ये लोग अल्लाह के सिवा पुकारते हैं, वो (लोग) किसी चीज़ को पैदा नहीं कर सकते, बल्कि वो तो ख़ुद पैदा किए गए हैं, (और वो) मुर्दे हैं, ज़िंदा नहीं, उन्हें तो ये भी ख़बर नहीं के ( अपनी क़ब्रों) से कब उठाए जायेंगे।
[सुरह अल नहल 20-21 आयत]
ये लोग आपको अल्लाह के सिवा औरों से डरा रहे हैं, जिसे अल्लाह गुमराह कर दे उसकी रहनुमाई करने वाला कोई नहीं।
[सुरह-ज़ुमर, आयत-नं 35]
"और अल्लाह-तआला पर जो भरोसा रखता है उसके लिए अल्लाह ही काफ़ी है"
[सुरह अत तलाक़, आयत-नं 03]
और उससे बढ़कर गुमराह कौन है जो अल्लाह के अलावा ऐसो को पुकारे जो उसका क़यामत तक जवाब नई दे सकते, बल्कि वो तो ग़ाफ़िल है उनकी पुकार से।
[सुरह अल-अहक़ाफ़ 46:5]
चलिये देखते हैं की बाबा (मज़ारों वाले) जिनसे कुछ मुस्लिम अपनी मुरादे मांगते हैं..क़यामत के दिन वो क्या जवाब देंगे:
“और जिस दिन अल्लाह तआला इन्हें और अल्लाह के अलावा जिनकी ये इबादत करते हैं उन्हें जमा करेगा के किया मेरे इन बंदों को तुम ने गुमराह किया या ये ख़ुद ही राह से गुमराह हो गए। वो जवाब देंगे के तू पाक ज़ात है ख़ुद हमें ही ये ज़ैबा ना था के तेरे सिवा औरों को अपना मददगार (औलिया) बनाते। बात ये है के तू ने इन्हें और इनके बाप-दादों को आसूदगियां अता फरमाई यहां तक के वो नसीहत भुला बैठे ये लोग थे ही हलाक होने वाले।
तो इन्होंने तो तुम्हें तुम्हारी तमाम बातों में झूठलाया अब ना तो तुम में अज़ाबो के फ़ेरने की ताक़त है ना मदद करने की तुम मैं से जिस जिस ने ज़ुल्म किया है हम उसे बड़ा अज़ाब चखायेंगे।”
[सुरह 25, आयत 17-19]
ऐ नबी सा.व. कह दिजिये इन्सानों से के तुम्हारा नफ़ा और नुक़सान का इख़्तियार सिर्फ़ अल्लाह के पास है।
(सुरह जिन:21)
ऐ लोगो! तुम सिर्फ़ मेरे दर के फ़कीर हो।
(सुरह फातिर:15)
और तुम्हारे रब का फ़रमान है की मुझसे माँगो मैं तुम्हारी दुआओ को क़ुबूल करुंगा।
(सुरह मोमिन:60)
“यही तुम्हारा रब है इसी की हुकुमत है और जिनको तुम अल्लाह के इलावा पुकारते हो वह खजूर की गुठली (बीज) के बराबर भी इख़्तियार नहीं रखते, अगर तुम उनको पुकारो तो वे तुम्हारी सुनेंगे भी नहीं और अगर सुन भी लें तो तुम्हारा कुछ भी ना कर सकेंगे और क़ियामत के दिन तुम्हारे इस शिर्क का साफ़ इंकार कर जायेंगे आप को कोई भी हक़ तआला जैसा ख़बरदार ख़बरे ना देगा”
[सुरह फ़ातिर 13,14]
"आप कह दिजिये तुमने अपने ख़ुदाई शरिकों के हाल पर भी नज़र की है जिन्हे तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो ज़रा मुझे भी बताओ की उन्होंने ज़मीन का कौन-सा हिसा (पार्ट) बनाया है या उनका आसमान मैं कुछ साझा है या हमने उनको किताब दी है कि ये उसी दलील पर क़ायम हैं?"
[सुरह फ़ातिर - 40]
और ज़्यादा ताक़ीद करते हुए फ़रमाया :
"और जिनको तुम अल्लाह के इलावा पुकारते हो वह ना तो तुम्हारी ही मदद कर सकते हैं और न अपनी मदद कर सकते हैं"
[सुरह आराफ़ - 197]
"और तुम्हारा अल्लाह के इलावा कोई भी न कारसाज़ है और न मददगार"
[सुरह अश शूरा - 31]
"कह! भला बताओ तो अल्लाह के इलावा तुम जिनको पुकारते हो अगर अल्लाह मुझे कोई तकलीफ़ पहुंचाना चाहे तो क्या ये उसकी दी हुई तकलीफ़ को दूर कर सकते हैं या अल्लाह मुझ पर इनायत करना चाहे तो ये उसकी इनायत को रोक सकते हैं"
[सुरह ज़ुमर - 38]
“वह जो सब बेक़रार की फ़रियाद सुनता है जब वह उसे पुकारता है और मुसीबत को दूर करता है और तुमको ज़मीन में तसर्रुफ़ वाला बनाता है क्या अल्लाह के इलावा और कोई भी इलाह है? तुम लोग बहुत कम ही ग़ौर करते हो”
[सुरह नमल - 62]
"कह दिजिये कि तो क्या तुमने (फ़िर भी) उसके इलावा और कारसाज़ क़रार दे लिए हैं जो अपनी ही ज़ात के लिए नफ़ा वा नुक़सान का इख़्तियार नहीं रखते"।
[सुरह राद - 16]
"और उससे बढ़कर गुमराह कौन होगा जो अल्लाह के इलावा औरों को पुकारे जो क़ियामत तक भी उसकी बात न सुने बल्कि उनके पुकारने की ख़बर तक ना हो"
[सुरह अहक़ाफ - 5]
"ऐ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम! आपको और और आपके पैरोकार अहले ईमान को बस अल्लाह ही काफ़ी है”।
[सुरह अनफ़ाल - 64]
मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :
"अल्लाह उस से नराज़ होता है जो अल्लाह से नहीं मांगते"।
[सुनन तिर्मिज़ी (पुस्तक 48, हदीस 4)]
"(ऐ मुहम्मद ﷺ) और जब आप से ये मेरे बंदे मेरे बारे में पुछा करें तो उनसे कह दो की मैं क़रीब ही हूं, पुकारने वाले की पुकार को सुनता हूँ और क़ुबूल करता हूं जब कभी भी वो मुझे पुकारे तो (लोगो को) भी चाहिये की मेरे अहकामों को मानें और मुझपर ईमान लाएं ताकी वो हिदायत पा जाएं"।
[सुरह बक़राह - 186]
इस पार्ट को यही रोकते हैं,
जुड़े रहें....
इस नुक़्ते पर मज़ीद गुफ्तगूं इन्शाअल्लाह अगले पार्ट में पेश की जायेगी।
अल्लाह से दुआ है कि अल्लाह हमे बिदअत और शिर्क से बचाए और वही दींन पर अमल करने की तौफ़ीक अता करे जो दींन रसूल अल्लाह छोड़ कर गए थे, आमीन।