Mazar aur Islam
Mazar aur Islam
शिर्क और तौहीद (पार्ट - 15)
आज का हमारा मौज़ू है —
हमारे मआशरे में एक और शिर्क देखने को मिलता है जो एक ख़ास तबक़े के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मज़ार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपनी हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में क़व्वालियां पढ़ना वग़ैराह वग़ैराह....
ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ?
जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मज़ार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते, हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ क़ुबूल करेगा।
मगर अल्लाह फ़रमाता है :
देखो, इबादत ख़ालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफ़ारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फ़ैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता।
(सुरह ज़ुमर, आयत नंबर 3)
ग़ौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं।
जबकि अल्लाह फ़रमाता है:
भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ़ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम ग़ौर करते हो.
(सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62)
अल्लाह के सिवा कोई हमे नफ़ा या नुक़सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़ब्र वाले हमे क्या नफ़ा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्मीद लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है।
जाबिर (रज़ि) रिवायत करते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क़ब्रों पर बैठना, क़ब्र का पक्का करवाना और क़ब्र पर इमारत बनवाना मना फ़रमाया था।
[सहीह मुस्लिम, किताबुल जनाज़ा, किताब-4, हदीस - 2116]
सैय्यदना अली ब्यान करते हैं के मुझे रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया के मैं हर तस्वीर मिटा दूँ और हर ऊँची क़ब्र बराबर कर दूं। [सहीह मुस्लिम: अल जनाज़ा 969]
सैयदा आयशा (रज़ि अन्हा) रिवायत करती है के एक दफ़ा उम्मत-उल-मोमिन सैयदा उम्मेह सलमा (रज़ि अन्हा) या सईदा उम्मेह हबीबा (रज़ि अन्हा) ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ज़िक्र किया जो उन्होन (हबशा) में देखा था या उसे (मरिया) कहा जाता था, उन्होंने उस गिरजे में लटकी हुई तस्वीर का ज़िक्र भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने किया तो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :
"ये लोग ऐसे थे के, जब उन में से कोई नेक आदमी मर जाता था तो उसकी क़ब्र पर इबादतगाह बना लेते और फ़िर उस में उसकी तस्वीरें लटका देते, क़यामत के दिन ये अल्लाह के नज़दीक बदतरीन मख़लुक़ मैं से होगें"।
[सही-बुखारी: 1341]
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :
"ऐ अल्लाह मेरी क़ब्र को बुत ना बनाना जिसकी इबादत की जाए। अल्लाह का उस क़ौम पर गज़ब नाज़िल होता है जो अपने नबियो की क़ब्रों को इबादत गाह बना लेते हैं"।
[मुवत्ता इमाम मलिक 9:88]
मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : आग़ाह रहना उन लोगो से जिन्होने अपने नबी और नेक बुज़ुर्गो की क़ब्रों को इबादत की जगह ले लिया है लेकिन तुम मैं से ऐसा कोई मत करना मैं तुम्हें मना फ़रमाता हूँ इस चीज़ से ।
[साहिह अल बुखारी, (004:1083)]
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन लोगो के ऊपर लानत की है, जो लोग क़ब्रों पर जाकर चिराग़ जलाते हैं।
[सुनन अबू दाऊद, हदीस-3230]
नोट: बहुत से लोग कहते हैं कि हम बाबा की इबादत कहा करते हैं लेकिन हम तो सिर्फ़ उनसे दुआ मांगते हैं तो उनके इल्म के इज़ाफ़ा के लिए बता दूं की हज़रत-नौमांन-बिन-बशीर (रज़ि अल्लाहु अन्हु) से रिवायत है रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया दुआ एक इबादत है।
[जामे तिर्मिज़ी, वॉल्यूम - नंबर: 2,
किताब: (किताब-उल-दुआ), हदीस-नं: 1297]
इस पार्ट को यही रोकते हैं,
जुड़े रहें....
इस नुक़्ते पर मज़ीद गुफ्तगूं इन्शाअल्लाह अगले पार्ट में पेश की जायेगी।
अल्लाह से दुआ है कि अल्लाह हमे बिदअत और शिर्क से बचाए और वही दींन पर अमल करने की तौफ़ीक अता करे जो दींन रसूल अल्लाह छोड़ कर गए थे, आमीन।